व्यापमं घोटाला, आरोपों के कटघरे में सीबीआई

न काहू से बैर - राघवेन्द्र सिंह
नया इंडिया भोपाल
व्यापमं महाघोटाला एक तरह से मध्यप्रदेश के माथे पर कलंक है। खास बात ये है कि इसे विधानसभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगभग इन्हीं शब्दों में स्वीकार भी किया है। एसटीएफ की जांच के दौरान आरोपियों में एक किस्म की दहशत थी और मुकदमे दर्ज होने के साथ गिरफ्तारी का सिलसिला भी खूब चल रहा था। इसके चलते व्यापमं से जुड़े करीब पचास लोगों की मृत्यु भी हुई जिन्हें कथित रूप से हत्या के तौर पर भी देखा गया। अब हम आते हैं सीबीआई की जांच और उसके द्वारा सबूतों के बारे में। असल में व्यापमं को लेकर विशेष अदालत में सुनवाई का दौर चल रहा है। दरअसल पिछले दिनों विशेष अदालत में मध्यप्रदेश मेडिकोलीगल एंड फारेंसिक के निदेशक रहे डाक्टर दिव्य किशोर सत्पथी की जमानत अर्जी पर सुनवाई चल रही थी। यहां सीबीआई और सत्पथी के वकीलों की जिरह में जो कुछ निकलकर आया वह तो अदालत का विषय है लेकिन सत्पथी के वकील द्वारा पूछे गए सवाल सबूत के अभाव में अनुत्तरित ज्यादा रहे। इससे लगा कि शुरुआती मामले में सीबीआई साक्ष्य कम और आरोपों की गंभीरता को लेकर जमानत नहीं देने पर जोर देती रही। मामला गंभीर होने के साथ-साथ हाईप्रोफाइल है और आमजन की नजर में भी है। ज्यादातर प्रकरणों पर जमानत ऊपर की अदालतों से मिल रही है।
खासबात ये है कि जो आतंक एसटीएफ जांच के दौरान था सीबीआई के हाथों में आते-आते ऐसा लगा मानो आग पर किसी ने पानी डाल दिया हो। सीबीआई पर बदनामी का एक ठीकरा पहले से ही फूटा हुआ है कि ये केन्द्र सरकार का तोता है। लगभग बाईस सौ आरोपियों से जुड़ा व्यापमं घोटाला सीबीआई जांच के बाद डरावनी कार्रवाई से तो मुक्त दिखा लेकिन एक संदेश यह भी जा रहा है कि जांच पड़ताल में तथ्यों की कमी है और एसटीएफ की तुलना में उसकी मारकता भी कम है। डा. सत्पथी के वकील द्वारा बार-बार यह पूछे जाने पर कि आरोपों के पक्ष में सबूत भी अदालत के सामने पेश किए जाएं। संक्षेप में यह है कि सीबीआई का आरोप है कि प्रवेश दिए जाने वाले छात्रों में सत्पथी की भूमिका है। जबकि उनके वकील का कहना था कि वे केवल छात्रों के दस्तावेजों की छानबीन ही करते थे। ऐसे में प्रवेश में उनकी क्या भूमिका है। यह बात सीबीआई को सबूतों के साथ बतानी चाहिए। छानबीन प्रभारी प्रवेश कैसे दिला सकते हैं। जबकि उनके इस तरह के दस्तावेजों पर कहीं कोई हस्ताक्षर भी नहीं हैं। बहस लंबी थी उसके कुछ बिन्दु हमने आपके सामने रखे। इससे सीबीआई की जांच और उसके जुटाए गए तथ्यों पर स्वत: ही सवाल खड़े होते हैं। हालांकि मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने जमानत अर्जी खारिज कर दी लेकिन ऊपर की अदालतों से मिल रही जमानतें ऐसा संदेश देती हैं कि जांच में तथ्य और साक्ष्य इतने मुकम्मल नहीं हैं कि आरोपियों को सीखचों के भीतर रखा जाए।
क्या आरोपियों को धरती निगल गई है...
कुल मिलाकर व्यापमं के बड़े खिलाड़ियों के खिलाफ सीबीआई ने बहुत शोर शराबे के साथ उनकी गिरफ्तारी की कोशिश की लेकिन मजे की बात ये है कि वे तमाम दिग्गज गिरफ्तार नहीं किए गए बल्कि एक-एक कर अदालत में समर्पण कर रहे हैं। क्या यह संभव है कि सीबीआई आरोपियों की तलाश करे और वे उसे मिलें ही नहीं। ऐसा लगता है जैसे आरोपियों को धरती निगल गई है या आसमान खा गया है। इससे जांच में लगी सीबीआई पर यह संदेह मजबूत होता है कि उसकी दिलचस्पी जिम्मेदारों को पकड़ने में कम है। हो सकता है कि सीबीआई आरोपियों को भागने का मौका देकर उन्हें थकाना चाहती हो। यह उसकी रणनीति हो सकती है लेकिन व्यापमं घोटाले की गंभीरता और जांच ऐजेंसी की धमक के खिलाफ लगती है। इस मामले में एसटीएफ चाहे जितनी बदनाम रही हो मगर उसका गुनहगारों पर खौफ तो था। जांच में लगे अधिकारियों पर गड़बड़ी के आरोप भी हैं मगर हाईप्रोफाइल आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही करने का जीवट भी उसी ने दिखाया था। कितने दबाव और लालच के बीच उन्होंने काम किया होगा इसका अंदाजा तो एसटीएफ के अफसर ही लगा सकते हैं। कह सकते हैं कि सीबीआई नाम बहुत बड़ा है लेकिन जांच में लगे अधिकारियों से माफी के साथ, आरोपियों के मामले में वह अभी तक फ्रेंडली ज्यादा नजर आती है। वरना आरोपी समर्पण नहीं करते बल्कि रातों रात पकड़े जाते। अभी भी कई दिग्गज बाहर हैं।