Friday, December 13th, 2024

मतदाताओं के लिए बिछने लगे हैैं जाल

राघवेंद्र सिंह

बचपन से अब तक स्कूलों में पढ़ते और बड़े बुजुर्गों से एक किस्सा खूब सुनते आ रहे हैैं कि किस तरह से लोगों को झांसा देकर फंसाया जाता है। इसे समझने के लिए पक्षियों से जुड़ी भूली बिसरी सी एक कहानी याद आ रही है। इसमें बताया जाता है किस तरह बहेलिया जाल और दाने लेकर जंगल में जाता है और जाल बिछाने के बाद उन पर दाने डाल पक्षियों को फसाता है। कुछ समझदार पक्षी अपनी बिरादरी वालों को अक्सर बचने की सलाह दिया करते हैैं जिसमें कहा जाता है कि शहर से जाल और दाने लेकर शिकारी आता है और वह पहले जाल बिछाता है और फिर उसमें दाने डाल देता है। उपर उड़ रहे पक्षी दानों को देखकर जाल पर बैठते हैैं और दानें चोंच में भरकर जैसे ही उड़ते हैैं उनके पैर जाल के फंदे में फंस जाता हैैं। इसलिए जब जाल के साथ दाने दिखें तो वहां कोई भी पक्षी दाना खाने नहीं जाए। परिदों की बिरादरी के तजुर्बेेकार अपनी नई पीढ़ी के युवा पक्षी और पंख निकल रहे बच्चों को समझाते हैैं कि उनकी यह समझाइश रट लो। इसके बाद देखते यह हैैं कि पक्षियों से भरा एक जाल आसमान में उड़ रहा है और उसमें फंसे पक्षी यह रट रहे हैैं कि बहेलिया आएगा जाल बिछाएगा, दाने डालेगा और हमें फंसाएगा। लेकिन इस लालच में आकर हमें फंसना नहीं है। कमोबेश भारतीय राजनीति में अभी ऐसा ही हो रहा है। महात्मा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और  उन जैसे मोहल्ला से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेता मतदाताओं को पिछले सत्तर सालों से ऐसे ही कुछ समझा रहे हैैं ताकि सियासत के झांसे में मतदाता न फंसे और गलत पार्टी और गलत लोगों को पांच साल के लिये अपना और देश का भाग्य न सौैंपे।

2018 के आखिर में मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में विधानसभा के चुनाव होने हैैं। इसके बाद चार-पांच माह बाद 2019 में मई तक लोकसभा चुनाव भी होने हैैं। एक तरह से चुनाव का माहौल शुरू हो गया है। कह सकते हैैं शिकारी आएंगे, जाल बिछाएंगे, वादे और घोषणाओं के दाने डालेंगे, आशीर्वाद मांगेंगे और चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक आशीर्वाद देंगे और दाने खिलाएंगे कम और दिखाएंगे ज्यादा। यह दौर विधानसभा चुनाव के चक्कर में शुरू हो गया है।

मध्यप्रदेश में मतदाताओं को दाना डालते हुए प्रदेश कांग्र्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ कहते हैैं हम सरकार में आते ही डीजल, पेट्रोल के दाम घटा देंगे। युवाओं को व्यवसायिक परीक्षाओं में जमा फीस लौटाने का वचन दिया है। पार्टियों और उनके कर्ताधर्ताओं की भाषा और भाव बदल रहे हैैं इसलिए चुनाव पूर्व पहले जिन वादों को घोषणा पत्र कहा जाता था उनका नया नामकरण किया है-दृष्टिपत्र, संकल्प पत्र और वचन पत्र। मतदाताओं को जाल में लेने की यह नई शब्दावली है। भावुक करने वाले नारे और जुमलों में शामिल किया जाए तो इन दिनों जनआशीर्वाद यात्रा पर निकले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह कहना भी खूब चर्चाओं में है - आप मुझे आशीर्वाद दो मैैं आपकी जिंदगी बदल दूंगा। इसे राजनीतिक दलों का मायाजाल और काला जादू भी कह सकते हैैं। हालांकि जादूगरी और टोने टोटके की दुनिया में अब यह बातें बहुत दुर्लभ हो गई हैैं। मगर राजनीति के जादूगर शब्दजालों से पहले अपने कार्यकर्ताओं को लुभाते हैैं और फिर वादों के दाने डालकर मतदाताओं को फंसाते हैैं।

आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का लुभावना नारा दिया था। इसकी दम पर लंबे समय तक उन्होंने राज किया। अलग बात है कि पाकिस्तान को 1971 में युद्ध हराने के बाद उन्हें देवी और दुर्गा का अवतार भी कहा गया था। विस्तार में जाने की बजाए हम सीधा 2014 पर आते हैैं जब नारों के साथ दृष्टिपत्र और संकल्प पत्रों में पार्टी की नीतियों की जगह जुमलों ने हथिया ली। गरीबों के खाते में लाखों रुपये आएंगे, विदेशों से कालाधन भारत लेकर आएंगे, हर साल एक करोड़ नौकरियां देंगे। मगर कुछ नहीं हुआ तो यह कहने में भी संकोच नहीं आया कि वे तो जुमले थे। हम इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओं से लेकर नरेंद्र मोदी के मैक इन इंडिया की बात कर रहे हैैं। उन्होंने कहा था मनरेगा कांग्र्रेस का स्मारक बनेगा। बाद में वोट के लालच में इसी मनरेगा में मोदी सरकार ने बजट बढ़ाया और जनसंख्या की शक्ति को चीन तरह विकास में लगाने के बजाए आलस और मक्कार की तरफ धकेल दिया।

केंद्र मनरेगा में पैसा बढ़ा रहा है और राज्य एक रुपये किलो गेंहू और दो रुपये किलो चावल देकर मेन पावर को कुशल श्रमिक बनाने के बजाए आलसी श्रमिक बनाने के अभियान में जुट गए हैैं। गांव में खेती के लिये मजदूर नहीं मिल रहे हैैं और शहरों में उत्कृष्ट काम करने के लिए कुशल श्रमिक। चीन ने जनसंख्या जो मुसीबत बन रही थी उसे अपने ताकत बना महाशक्ति अमेरिका तक को हिला कर रख दिया। भारत में पार्टी और लीडर बातें तो देश भक्ति की करते हैैं और सरकार में आते ही वोटरों को मुफ्त भोजन की अफीम चटा देते हैैं। गरीब आदमी वोट का जरिया बन जाता है और सरकार में आने के बाद पार्टियां मनमानियां करने लगती हैैं। गरीब मुफ्त के रोटी, चावल के नशे में है और शिकारियों से बचने की सारी सलाहों को अनसुना कर रहा है।

किसानों को कर्ज माफी की बातें 90 के दशक से पार्टियां कहती आई हैैं। कुछ ने कर्ज माफ भी किए मगर कर्ज में पैदा और कर्ज में ही मरने वाला किसान अब कहता है उसे अब कर्ज माफी की खैरात नहीं चाहिए। किसान का कहना है उसे सब चीजें बाजार मूल्य पर ही मिलें लेकिन उसके कृषि उत्पादन का लागत मूल्य और उसमें 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर बाजार मूल्य तय कर दिया जाए। अब उसे रियायत की अफीम की दरकार नहीं है। अनुदान और रियायत ने उसे दिनरात की मेहनत के बाद भी आत्महत्या के मुहाने पर पहुंचा दिया है। इस पर जले पर नमक यह है कि किसान नशा करने से, प्यार में पागल होने, जादू टोने और फिजूलखर्ची के कारण आत्महत्या कर रहा है। उससे वादा किया था लागत का डेढ़ गुना बाजार मूल्य दिलाया जाएगा। वह तो मिला नहीं। अब 2022 तक उसकी आय दौगुनी करने की बात हो रही है। मगर कोई यह नहीं बता रहा है वह दौगुनी होगी कितनी क्योंकि अभी किसान की आय कम घाटा ज्यादा है। पहले तो उसकी आय प्रति एकड़ कितनी है यह तय करने की जरूरत है। इस पर किसी शिकारी का ध्यान नहीं हैैं। सब दौगुनी करने का दाने डालने में लगे हैैं। रोजगार के मामले में यही हालत युवाओं की है। घटिया शिक्षा के चलते प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक पढऩे वालों की बदहाली है और सेहत के मामले में भी मध्यप्रदेश समेत राज्यों की हालत रुलाने वाली ज्यादा है। अस्पताल हैैं तो डाक्टर नहीं हैैं, डाक्टर हैैं तो जांच करने वाली मशीनें काम नहीं कर रही है। सब कुछ है तो दवाएं नहीं हैैं। मगर जाल लेकर आने वाले शिकारियों के पास दृष्टिपत्र से लेकर वचन पत्र तक के दाने खूब हैैं।

एक और बार चुनाव लडऩे वाले दल और उनके माई बापों के लिए यह जो कार्यकर्ता नाम का प्राणी है यह भी अब एक बोझ की तरह हो गया है। इसलिए उसकी अनदेखी लगतार की जा रही है सभी दलों में। चाहे वह सत्ता में हो या विपक्ष में। बहुत उदारता के साथ अगर सोचें तो 2024 तक ही कार्यकर्ताओं की कुछ थोड़ी बहुत पूछपरख रहेगी। इसके बाद जो काम कार्यकर्ता कर रहे हैैं वह इवेंट की कंपनियां करेंगी। ठीक वैसे ही जैसे शादी ब्याह के इवेंट्स कंपनियां मैनेज करती हैैं। खाना बनाने, परसने, खिलाने, मेहमानों का स्वागत करने से लेकर गाने बजाने और नाचने तक की टीम होती है। आपको कुछ नहीं करना केवल स्टेज पर आना है और वरमाला पहनाने से लेकर हनीमून पैकेज तक कारपोरेट सेक्टर के हवाले हो रहा है। ऐसे में मतदाता तो ठीक कार्यकर्ताओं के भी दिन अब लद जाएंगे।

साधो, ठगे गए मतदाता

यह जनगीत मशहूर कवि और व्यंग्यकार संपत सरल से बहुत पहले ही सुना था लेकिन अब गाजे बाजे के साथ धूम मचा रहा है।
साधो, ठगे गए मतदाता
घूमन   में  मदमस्त  जुलाहा,  एक  सूत  नहीं  काता।।
अच्छे दिन  के जुमले झांसे, जाल बिछाकर पंछी फांसे।
काला  धन   कबहूं   आएगा,  रीता   जन-धन  खाता।।
हांकत फेंकत  कैसी-कैसी, पाक-चीन  की  ऐसी-तैसी।
अपनी  थोथी  जय  सुन-सुनकर,  हंसती भारत माता।।
कसमें   वादे   हवा  हवाई,  सूट-बूट की  हद है भाई।
मन  की  बात  करत  इकतरफा, बोलत नहीं अघाता।।
जनता   चावै   धंधा  रोटी,  आप  लगावै दाढ़ी-चोटी।
उस ज्ञानी की  क्या  कहिए  जो, घी से आग बुझाता।
साधौ, ठगे गए मतदाता...

सांची कहौं

मैं शुद्ध अन्त:करण से मोदी जी की कार्यपद्धति से असहमत एवमं असंतुष्ट हूँ, क्योंकि वह सर्वसमावेशी न होकर नितांत व्यक्तिवादी और अहम से परिपूर्ण हंै, इसीलिए वे सफल भी नहीं हो पा रहे हैं।
इतना ही नहीं उनकी कार्य प्रणाली बीजेपी की मूल मान्यताओं, अर्थ और सत्ता के विकेंद्रीकरण के  विरुद्ध है। यह बहुत ही गम्भीर चिंता का विषय है। दीनदयाल जी और अटलजी की सोच से एक दम उलट। अधिकांश मंत्रियों की स्थिति चपरासियों से बेहतर नहीं है। अफसरशाही और भ्रष्टाचार चरम पर है। कभी मोदी जी का अनन्य प्रशंसक रहा हूँ मैं। प्रधानमंत्री बनने से पूर्व मोदी जी की ग्वालियर के फूलबाग की सभा का संचालन भी मैंने ही किया था किन्तु इससे क्या अपनी ऑंखें बन्द कर लूं? मोदी जी ने मेरा कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं किया है मेरी यदि कुछ निजी शिकायतें हैं तो वे प्रदेश सरकार अथवा स्थानीय नेताओं से हो सकती हैं, पर देश हित के सामने वे नगण्य हैं। एक राज चड्ढा के मिट जाने से कोई अंतर नहीं पड़ता, किन्तु लोकतंत्र नष्ट हो गया तो कुछ भी नहीं बचेगा। इसीलिए चिंतित हूं।
(भाजपा नेता रहे राज चड्ढा की फेसबुक से, श्री चड्ढा ग्वालियर जिला भाजपा के अध्यक्ष से लेकर म.प्र. भाजपा के मंत्री भी रहे हैैं।)

(लेखक न्यूज चैनल IND24 MP/CG समूह के प्रबंध संपादक )

Source : Agency

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